ब्रह्माकुमारीज़ की कहानी

ब्रह्माकुमारीज़ एक आध्यात्मिक विश्व विद्यालय

माउण्ट आबू, राजस्थान के अरावली पर्वत श्रृंखला की ऊंची चोटी पर बसा हुआ पर्वतीय स्थल जो वर्ष 1950 में कराची, पाकिस्तान से स्थानान्तरित आदि संगठन को मनन चिन्तन और शान्ति का अनुभव कराने वाला एक आदर्श स्थान साबित हुआ। किराये पर लिये गये मकान में कुछ साल रहने के बाद इस संगठन ने वर्तमान स्थान पर स्थानान्तरण किया। जो प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय (ब्रह्माकुमारीज़ एक ईश्वरीय विश्व विद्यालय) के नाम से स्थापित हुआ। ब्रह्माकुमारीज़ का यह मुख्यालय मधुबन के नाम से जाना जाता है।

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Spiritual Headquarters - Mount Abu

Take a magical tour to Mount Abu, India where Brahma Kumaris students have been journeying to for over 60 years for spiritual wisdom.

वर्तमान प्रशासक

दादी जानकी जी

दादी जानकी जी का जन्म सन 1916 में हुआ और इस समय वे ब्रह्माकुमारीज़ विश्व विद्यालय की मुख्य प्रशासिका के रूप में सेवारत हैं। अपनी अचल प्रतिबद्धता के साथ अनेकों की सेवा करते हुए वो अपने आपको किसी भी प्रकार के सीमा में बांधना पसन्द नहीं करती। इस संस्था के साथ वो 1937 से जुड़ी और लण्डन में 1974 से आज तक 40 वर्ष का समय आपने बिताया। विभिन्न संस्कृति और व्यवसाय के लोगों को उन्होंने अपने जीवन से प्रेरित किया और उनमें बेहतर विश्व निर्माण के लिए अपने जीवन को सर्वश्रेष्ठ बनाकर सहयोगी बनाया। उनकी ज्ञानयुक्त गहरी और व्यावहारिक बातों को सुनना और देखना अभूतपूर्व आनन्द के क्षण होते हैं। 

 

दादी हृदयमोहिनी जी

आप ब्रह्माकुमारीज़ की अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका हैं। उनके नाम का अर्थ है अनेकों के दिलों को आकर्षित करने वाली, और उनका नाम उन पर सटीक बैठता है। अधिक्तर लोग उन्हें गुल्जा़र (गुलाबों का बगीचा) के नाम से जानते हैं। ब्रह्मा बाबा द्वारा सन 1937 में बोर्डिंग स्कूल के बच्चों में से वो एक हैं। आध्यात्मिक सिद्धान्तों और अभ्यास के उनके निरन्तर प्रशिक्षण ने उन्हें गुणों का एक प्रत्यक्ष उदाहरण बना दिया है। शान्त, गम्भीर और गहन व्यक्तित्व की दादी गुल्जार जी ने भी विश्व भर के अनेकों को अपने जीवन से प्रेरित किया है।

 

दादी रतनमोहिनी जी

आप ब्रह्माकुमारीज़ की सह मुख्य प्रशासिका हैं। और मुख्यालय में रहने वाली वो एक अति सक्षम सदस्यों में से एक हैं। ब्रह्माकुमारीज़ के शुरुआती दिनों में उन्होंने अपने जीवन का आधार स्तम्भ अपने बाल्यकाल से ही सशक्त बनाया। उन्होंने अपने नाम के अनुसार रतनमोहिनी बहुत खूबसूरत रत्न को हमेशा हल्के और तनावमुक्त रहकर अपने जीवन से प्रत्यक्ष किया। समर्पित और स्पष्ट वक्ता दादी रतनमोहिनी जी सम्पूर्ण भारत के समर्पित बहनों के प्रशिक्षण और विकास के कार्यों के साथ युवा भाई-बहनें जो अपने उन्नति और विकास की ओर बढ़ना चाहते हैं और उनके विकास के कार्य करने वाला संगठन इन सभी के लिए दादी जी एक आध्यात्मिक स्रोत के रूप में हाज़िर रहती हैं। अपनी आयु के 80वें वर्ष में भी वो हृदय से युवा और जिन्दादिल हैं।

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Dadi Janki

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