यहाँ पर कुछ वास्तविक आत्मकथायें और छोटी घटनाओं का वर्णन है जो हममें से किसी का भी इससे सामना हो सकता है और कैसे इन लोगों ने ‘शक्ति' से इसका सामना किया वो बताया है। ये कहानियाँ मुख्य अष्ट शक्तियों और कुछ अन्य शक्तियों को दर्शाता है।
सहनशक्ति द्वारा तलाक जैसे परिस्थिति को सम्भालना
मेरे पति ने मेरे 41वें जन्मदिन से एक सप्ताह पहले घर छोड़ कर चले गये। 6 महीने बाद मेरे तीनों बच्चे भी उनके साथ रहने चले गये। इस अलगाव प्रक्रिया के कारण कोर्ट में हाजिरी देने के समय मैं बहुत दु:खी और हारी हुई महसूस कर रही थी। मैं बताना चाहूंगी कि ये बात इतनी सहज नहीं थी जितना मैं इसे जीवन में ले पाती।
दूर होने का पहला सबक बहुत दुखद था। दर्द से खुद को किनारा कर 20 साल का पारिवारिक जीवन छोड़कर अकेले जीना मेरे लिए भयावह था। तलाक की यह प्रक्रिया भयानक थी और लोग जोर दे रहे थे कि मुझे हर चीज़ के लिए लड़ना चाहिए। दोस्तों के परस्पर सांत्वना और मुझे समझाने वाला प्रयास और धीरज भरा सहारे ने ये महसूस कराया कि मैं एक आत्मा हूँ, मेरा अस्तित्व है और मुझे अपने रिश्तोंा से पहचाना जाये ये जरूरी नहीं है। ये मुझे परिभाषित नहीं कर सकते। मुझे अपने विचारों में डूबे रहने में इस पाठ ने कुछ वक्त लिया।
तलाक की प्रक्रिया को जल्दी पूरा करने का मैंने संकल्प किया। वैसे भी मैं इसके अप्रत्यक्ष प्रभाव को कम करना चाह रही थी। घर की चीजें कोई मेरे लिए आवश्यक नहीं थी। मैं आराम से फिर से शुरुआत कर सकती थी। मेरे पारिवारिक जीवन के इस प्रस्फुटन से पहले मैं कुछ वर्ष आध्यात्मिक अध्ययन में डूब गई। नि:सन्देह, यह जीवन-विकल्प इस हमले की उपज थी किन्तु मैं इस बात में दृढ़ थी कि मेरे विकल्प दीर्घकाल के लिए सही होंगे, मुझे बस इस तूफान को पार करना है।
मेरे दर्शनशास्त्र के अध्ययन से मैंने आध्यात्मिक शक्तियों को बारीकी से जाना – वास्तविकता का सामना करने की शक्ति, परिस्थितियों को समाने और स्वीकार करने की शक्ति, निर्णय करना कि क्या यह सही है, परखना कि मुझे ऐसा करना चाहिए या फिर दूसरा तरीका अपनाना चाहिए। जो भी इसमें शामिल हैं उन्हें सहयोग देना, जो भी मैंने सोचा ठीक है, उसे जाने दो, अकेले पड़ जाने के ग़म को सहना और अलगाव की प्रक्रिया के दुष्प्रभावी विस्तार को संकीर्ण करना। मैंने कर्मों के हिसाब किताब को समझा, मेरे पुराने पाप-कर्मों का कर्ज, शायद पूर्व जन्मों का। ये सभी फिर से जल्दी ही चुक्तू होने आये थे।
मैं 30 साल से अधिक समय से मानसिक स्वास्थ्य केन्द्र में व्यावसायिक सलाहकार के रूप में कार्यरत हूँ और विचारों के खेल के सारे पहलुओं को अच्छी तरह से जानता हूँ। मैंने देखा है कि कैसे आत्म सम्मान की कमी, निर्णय लेने की अक्षमता, चिड़चिड़ापन, लोगों के जीवन में कैसे अपना कार्य करते हैं। समझदारी और सहनशीलता का छोटा सा डोज़ भी इसमें बॉम का कार्य करता है और आपको एक सभ्यतापूर्वक समस्या के समाधान की ओर ले जाता है।
कई बार मैंने ये भी देखा है कि कैसे सम्मानजनक शब्द और कर्म आपसी विश्वास को बढ़ाते हैं और तुरन्त किसी का मित्र बना देते हैं। एक बीमार व्यक्ति सिगरेट पीना चाहता था। जब अस्पताल कर्मियों ने उसे अपने आपको काबू में रखने को कहा तब वह आवेश में आकर रोने लगा और एक कर्मचारी पर बरस पड़ा। उसके इस आवेश को देखते हुए मैंने उस अस्पताल कर्मी से कहा कि तुम कमरे से बाहर जाओ मैंने उसे विश्वास दिलाया कि मैं उसकी चिन्ता और मांग को समझता हूँ। केवल यह छोटा सा परिवर्तन और उसके प्रकम्पनों के कारण वह शान्त और स्थिर हो गया। आत्मविश्वास और निश्चिन्तता के साथ मैंने देखा कि कुछ चुने हुए शब्द कैसे कमरे के वातावरण को बदल देते हैं। यह विवेकशीलता एक बहुमूल्य और आवश्यक कला है आपके कार्यस्थल और घर के लिए। सारे दिन में एक दूसरे के साथ आमना-सामना या फिर निमंत्रण की जगह यह तरीका बहुत प्रभावी साबित होता है। मैं जानता हूँ कि कभी-कभी नियंत्रण करना और सामना करना यह रास्ता लोगों को तलाक की तरफ ले जाता है। जीवन रूप से इस चलचित्र में हरेक कलाकार अपना सर्वश्रेष्ठ अभिनय कर रहा है। इससे अधिक हम किस बात की मांग कर सकते हैं। मैं भी अपना सर्वोत्तम प्रयास रहा हूँ। जीवन को स्वीकार करने की मेरी शक्ति विकसित हो रही है। -LE
फैसला करने की शक्ति का उपयोग करके भय से मुक्त रहना
मुझे एक लम्बा आराम का समय चाहिए था। मेरे काम का समय काफी ज्यादा था और जीवन बहुत व्यस्त था। मुझे कुछ समय बाहर बीताना था। मेरे फ्लैट में रहने वाले साथी की तेज आवाज करने वाली घड़ी मेरे लिए बहुत व्याकुल करने वाला था। मैं उसे कई तकियों के नीचे दबा देता था ताकि आवाज कम हो जाये। वो शायद सारा दिन काम पर रहती थी, मुझे ऐसा लगता है।
हुआ भी कुछ ऐसा ही कि कुछ ही क्षण में उसने दरवाजा खोला और भागती हुई अन्दर आई कुछ लेने के लिए कुछ भूल गई थी। उसने समय देखना चाहा। मैं पकड़ा गया, उसकी घड़ी अपनी जगह नहीं थी, वह क्रोधित हो गई। मैंने तकिये के नीचे से घड़ी निकाला। ये सही वक्त नहीं था। मैंने उसकी घड़ी को हटा दिया इससे वह बहुत गुस्से से भर गई। उसने जोर से चिल्लाया, "पागल लोग बेवकूफों वाला काम करते हैं"। यह बात मेरे दिल में चुभ गई।
सहसा, मैं अपनी अन्तर्चेतना के प्रति जागृत हो गया जैसे कि एक खरगोश का किसी दरिंदे से सामना हो जाता है। मैं उसके लहजे और चढ़ाई करने की भावना से इतना विचलित हो गया कि मेरे मूल्य और स्वाभिमान सब ढुलक गये। मुझे पता था कि मुझे झगड़े से नफरत है, मैं लोग और परिस्थितियों को छोड़कर भाग जाता था। क्योंकि मैंने पनपते झगड़े से दूर हो जाना चाहता था। मैं इन सबमें शामिल नहीं होना चाहता था और यहाँ फिर से वही होने वाला था। परन्तु इस बार समय कुछ अलग था, कुछ था जिससे मैं अन्दर से जाग गया था। धीरे-धीरे, अति सूक्ष्म रूप से, मेरे अन्दर की ताकत ने मुझे सच्चाई दिखाई। मैं शान्त और स्थिर हो गया, मैंने अपने आपको इस भावनात्मक कशमकश से अलग खड़ा पाया। मैं उसे सुना सकता था, पर ना ही मैंने प्रतिकार किया और ना ही वहाँ से भागा।
अब मैं भयमुक्त हो गया, बिल्कुल स्वतंत्र।
हालांकि मेरी फ्लैट साथी मुझ पर अभी भी चिल्ला रही थी, लेकिन मैं एक अद्भुत आनन्द की अवस्था में जा चुका था। मैं नाचना और आनन्द में रहना चाह रहा था। सौभाग्यवश मैं समझ गया था कि मुझे शान्त और एकाग्र रहना है। मैंने उसे कुछ नहीं कहा, सिर्फ मुस्कराया।
इस पल ने मुझे बहुत कुछ सिखाया। मैंने देखा कि लम्बे समय से कैसे यह डर मेरे लिए कुछ मुद्दा बनकर रहा है। मैं विरोध और द्वन्द का सामना नहीं कर पाता था क्योंकि मैं डरता था। मेरे अपने प्रति बनाये गये छवि से झगड़े टकराते थे। यानि कि मैं अपने अन्दर के डर का कारण समझ नहीं पाता था। पर अब मैं अपने डर का सामना कर सकता था। मैं इसको नजदीक से परीक्षण करना चाह रहा था ताकि मेरे जीवन में डर के कारण बने दायरे से ऊपर उठ सकूँ। मैं अपने दैनिक योगाभ्यास में इसका चिन्तन करने लगा।
मेरे अन्दर ये जागृति आने लगी कि स्वतंत्रता ही मेरा सदा का साथी है, बस एक विचार मात्र से। मेरी हंसी, समझदारी, आजादी और स्वाभिमान सब इस भय के आवरण में छिप गये थे। और यह मेरा खुद के प्रति और भगवान के प्रति परम कर्तव्य बन गया कि मैं इसे और आगे न बढ़ने दूँ। इस डर का सामना कर पाने के कारण मैं अब बेहतर इन्सान बन गया। यह शत्रु कोई वहाँ या बाहर नहीं था। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सामने वाला कितना खतरनाक है, ये सिर्फ मेरे नज़रिये और खुद को बेहतर बनाने की जवाबदारी पर निर्भर करता है। खतरनाक और तीव्र आवेग का उत्पन्न होना मेरे हाथ में है। मेरे व्यवहार और कर्म का जवाबदार मैं खुद हूँ। हरेक बीते हुए कटु अनुभव ने एक डर और अस्वीकृति के सुराख छोड़े हैं। और ये आत्मा वापस फिर से वहाँ जाना नहीं चाहती थी। डर से लड़ने के बजाए, इससे पार मेरे अन्दर के एक स्वतंत्र स्थान पर जाने का मैने चयन किया। डर से पार होकर मैंने पाया कि ईश्वर खुद उस स्थान पर मेरा स्वागत कर रहे हैं। मेरा योगाभ्यास यहाँ स्थानांतरित हो गया।
जिन्दगी हमें रहस्यमयी तरीके से सीख देने में कुशल है। हमें बस उस खेल में हिम्मत के साथ डटे रहने की जरूरत है। - VB
परिवार में आत्महत्या का सामना करना (शुभकामनाओं की शक्ति)
मेरी जिन्दगी की सबसे बड़ी परीक्षा जनवरी 1997 में आई जब मेरे 27 साल के बेटे ने एक रिश्ते के कटुता में बदलने के कारण आत्मघात कर ली। ये ऐसा नहीं था कि कोई बात आई और चली गई। शारीरिक आघात, मानसिक उथल-पुथल, जुलाब सब एक साथ होने जैसा था।
36 घण्टे के बाद एक प्रिय मित्र ने मुझे परामर्श दिया कि "तुममें बहुत शक्ति है, बस उसका अब इस्तेमाल करो"। ये शब्द मेरे मानसिक कोहरे में व्याप्त हो गया। मुझे जो मेरे योगाभ्यास के क्लास में सबक मिला था कि आत्मा शाश्वत है, ये कैसे कर्मों की यात्रा से गुजरती है, यह मान्यता ज्ञान बनकर एक शक्तिरूप बन गया। सत्यता की शक्ति ने मुझे बाहरी और मानसिक झमेले से उठाकर विजयी बना दिया।
दोनों मानसिक स्थिति के भिन्नता का मुझ पर एक गहरा प्रभाव पड़ा। आध्यात्मिक शक्ति न सिर्फ मेरे लिए काम दे रहा था लेकिन मेरे अन्य दो छोटे बच्चों के सामने मुझे सबल रहने में शक्ति भरी। हालांकि उन्हें इस दुखद घटना का इतना आभास नहीं हो पा रहा था जिससे कई बार कई परिवार उभर नहीं पाते हैं।
मैंने अपने कार्यस्थल में शुभकामनाओं की शक्ति की महसूसता की। जैसे ही ये खबर मेरे दोस्तों तक पहुंची, मैंने उनकी शुभ भावनाओं की शक्ति को महसूस किया। उनका सर्वशक्तिमान परमात्मा से सम्बन्ध ने मुझे शक्ति प्रदान की। मैंने महसूस किया कि उनकी शुभकामनाओं से मेरे बेटे की आत्मा को एक दिव्य अलौकिक सहारा मिल रहा है। - LS